हरिकेला हजब्बा: बस डिपो पर संतरे बेचे, गांव में लाए शिक्षा की क्रांति; अब मिला पद्मश्री सम्मान

Padma Awards: 'मैं केवल कन्नड़ जानता हूं, अंग्रेजी या हिंदी नहीं. मैं परेशान था, क्योंकि मैं विदेशी की मदद नहीं कर पाया था. मैंने अपने गांव में स्कूल बनाने के बारे में सोचा.' हालांकि, उनका यह सपना पूरा होने में दो दशक लग गए. हजब्बा साल 1977 से मंगलुरु बस डिपो पर संतरे बेच रहे हैं. उन्हें अपने इन कामों के चलते अक्षर संत की उपाधि भी मिली है. 28 बच्चों से शुरू हुए विद्यालय में आज कक्षा 10वीं तक 175 बच्चे पढ़ाई करते हैं.

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